दोस्तों,क्या कभी आपने एक ऐसी हार्ड डिस्क प्रोब्लम का सामना किया है की जब कभी आप अपने कंप्यूटर में काम कर रहे हो व किसी फ़ाइल को ढूढने के लिए आप कंप्यूटर में लगी हार्ड डिस्क के किसी पार्ट पर जैसे C, D, E, F, आदि में से किसी एक पर क्लिक करते हैं या उसमे बने किसी फोल्डर पर क्लिक करते हैं तो वह हार्ड डिस्क या फोल्डर ओपन होने के वजाए हमारा कंप्यूटर एक नीचे दिए चित्र के अनुसार एक हार्डडिस्क प्रोब्लम सो करने लगता है , यह फ्रोब्लम नीचे दिए चित्र के अनुसार है.
रामनरेश मीणा का ब्लॉग
दोस्तों ,मै मेरे उन नेट गुरुओ का आभार व्यक्त करता हूँ ,जिनकी वज़ह से आज मै थोडा बहुत कंप्यूटर का ज्ञान रखता हूँ उनको मेरा शत -शत प्रणाम
मंगलवार, 17 अप्रैल 2012
शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012
“जब जीरो दिया मेरे भारत ने"
“जब जीरो दिया मेरे भारत ने”… पर कैसे दिया भारत ने जीरो?
जी.के. अवधिया के द्वारा 26 Nov 2009. को ज्ञानवर्धक लेख कैटेगरी के अन्तर्गत् प्रविष्ट किया गया।
बड़े गर्व से हम कहते हैं कि हमारे भारत ने विश्व को शून्य दिया। आइये देखते हैं कि आखिर भारत ने विश्व को शून्य दिया?
यदि शून्य न हो तो क्या आप गणितीय गणना कर सकते हैं?
जी हाँ, कर तो सकते हैं पर उसकी विधि अवश्य ही अत्यंत दुरूह होगी।
किंतु यह भी सत्य है कि कई हजार वर्ष बिना शून्य के ही बीते हैं। लोगों को यह तो ज्ञात होता था कि उनके पास कुछ नहीं है पर इस कुछ भी नहीं के लिये उनके पास कोई गणितीय संकेत नहीं था।
शून्य का आविष्कार किसने और कब किया यह आज तक अंधकार के गर्त में छुपा हुआ है परंतु सम्पूर्ण विश्व में यह तथ्य स्थापित हो चुका है कि शून्य का आविष्कार भारत में ही हुआ। ऐसी भी कथाएँ प्रचलित हैं कि पहली बार शून्य का आविष्कार बेबीलोन में हुआ और दूसरी बार माया सभ्यता के लोगों ने इसका आविष्कार किया पर दोनों ही बार के आविष्कार संख्या प्रणाली को प्रभावित करने में असमर्थ रहे तथा विश्व के लोगों ने इन्हें भुला दिया।
फिर भारतीयों ने तीसरी बार शून्य का आविष्कार किया। भारत में हुए इस तीसरी बार शून्य के आविष्कार ने संख्या प्रणाली को ऐसा प्रभावित किया कि सम्पूर्ण विश्व में शून्य का प्रयोग होने लगा। भारतीयों ने शून्य के विषय में कैसे जाना यह आज भी अनुत्तरित प्रश्न है। अधिकतम विद्वानों का मत है कि पांचवीं शताब्दी के मध्य में शून्य का आविष्कार किया गया।
इंटरनेट के सबसे बड़े विश्वकोष ‘विकीपेडिया’ के अनुसारः
“सन् 498 में भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलवेत्ता आर्यभट ने कहा ‘स्थानं स्थानं दसा गुणम्’ अर्थात् दस गुना करने के लिये (उसके) आगे (शून्य) रखो। और शायद यही संख्या के दशमलव सिद्धांत का उद्गम रहा होगा। आर्यभट द्वारा रचित गणितीय खगोलशास्त्र ग्रंथ ‘आर्यभटीय’ के संख्या प्रणाली में शून्य तथा उसके लिये विशिष्ट संकेत सम्मिलित था (इसी कारण से उन्हें संख्याओं को शब्दों में प्रदर्शित करने का भी अवसर मिला)।
“शून्य तथा संख्या के दशमलव के सिद्धांत का सर्वप्रथम अस्पष्ट प्रयोग ब्रह्मगुप्त रचित ग्रंथ ब्रह्मस्फुट सिद्धांत में पाया गया है। इस ग्रंथ में नकारात्मक संख्याओ और बीजगणितीय सिद्धांतों का भी प्रयोग हुआ है।
कुछ शोधकार्यों के अनुसार प्रचीन भारतीय ‘बक्षाली’ लिपि में भी शून्य का प्रयोग किया गया है और उसके लिये उसमें संकेत भी निश्चित है। बक्षाली लिपि का सही काल अब तक निश्चित नहीं हो पाया है परंतु निश्चित रूप से उसका काल आर्यभट के काल से प्राचीन है। इससे सिद्ध होता है कि भारत में शून्य का प्रयोग पाँचवी शताब्दी से पहले भी होता था।”
उपरोक्त उद्धरणों से स्पष्ट है कि भारत में शून्य का प्रयोग ब्रह्मगुप्त के काल से भी पूर्व के काल में होता था। किन्तु सातवीं शताब्दी, जो कि ब्रह्मगुप्त का काल था, में भारत का यह शून्य कम्बोडिया तक पहुँच चुका था और दस्तावेजों से यह भी ज्ञात होता है कि बाद में ये कम्बोडिया से यह शून्य चीन तथा अन्य मुस्लिम संसार में फैल गया।”
भारतीयों के द्वारा आविष्कारित शून्य ने समस्त विश्व की संख्या प्रणाली को प्रभावित किया और संपूर्ण विश्व को जानकारी मिली कि शून्य का अर्थ ‘कुछ नहीं’ होता है।
मध्य-पूर्व में स्थित अरब देशों ने भी शून्य को भारतीय विद्वानों से प्राप्त किया।
अंततः बारहवीं शताब्दी में भारत का यह शून्य पश्चिम में यूरोप तक पहुँचा।
सोमवार, 19 मार्च 2012
ऑनलाइन पैसा
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{Ramnaressh meena}
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